होलिका दहन कथा
लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद ईश्वर का परम भक्त था। उसने अपने पिता की आज्ञा की अवहेलना कर अपनी ईश-भक्ति जारी रखी। इसलिए हिरण्यकश्यपु ने अपने पुत्र को दंड देने की ठान ली। उसने अपनी बहन होलिका की गोद में प्रह्लाद को बिठा दिया और उन दोनों को अग्नि के हवाले कर दिया। दरअसल, होलिका को ईश्वर से यह वरदान मिला था कि उसे अग्नि कभी नहीं जला पाएगी। लेकिन दुराचारी का साथ देने के कारण होलिका भस्म हो गई और सदाचारी प्रह्लाद बच निकले। उसी समय से हम समाज की बुराइयों को जलाने के लिए होलिकादहन मनाते आ रहे हैं। सार्वजनिक होलिकादहन हम लोग घर के बाहर सार्वजनिक रूप से होलिकादहन मनाते हैं। होलिका दहन की परंपरा शास्त्रों के अनुसार होली उत्सव मनाने से एक दिन पहले आग जलाते हैं और पूजा करते हैं। इस अग्नि को बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है। होलिका दहन का एक और महत्व है, माना जाता है कि भुना हुआ धान्य या अनाज को संस्कृत में होलका कहते हैं, और कहा जाता है कि होली या होलिका शब्द, होलका यानी अनाज से लिया गया है। इन अनाज से हवन किया जाता है, फिर इसी अग्नि की राख को लोग अपने माथे पर लगाते हैं जिससे उन पर कोई बुरा साया ना पड़े। इस राख को भूमि हरि के रूप से भी जाना जाता है। होलिका दहन का महत्व होलिका दहन की तैयारी त्योहार से 40 दिन पहले शुरू हो जाती हैं। जिसमें लोग सूखी टहनियाँ, सूखे पत्ते इकट्ठा करते हैं। फिर फाल्गुन पूर्णिमा की संध्या को अग्नि जलाई जाती है और रक्षोगण के मंत्रो का उच्चारण किया जाता है। दूसरे दिन सुबह नहाने से पहले इस अग्नि की राख को अपने शरीर लगाते हैं, फिर स्नान करते हैं। होलिका दहन का महत्व है कि आपकी मजबूत इच्छाशक्ति आपको सारी बुराईयों से बचा सकती है, जैसे प्रह्लाद की थी। कहा जाता है कि बुराई कितनी भी ताकतवर क्यों ना हो जीत हमेशा अच्छाई की ही होती है। इसी लिए आज भी होली के त्यौहार पर होलिका दहन एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
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